top of page
Search
  • Writer's pictureJaspal Kahlon

अज़ान सुन कर अच्छा लगा

चंडीगढ़ आने के बाद कुछ चीजें मैं जैसे भूल ही गया हूँ। मुझे इसका एहसास चंडीगढ़ से बाहर जाने के बाद होता है।


पिछले हफ़्ते मैं श्रीनगर गया। पहली बार मैंने एक बाइक किराए पर लेकर घूमने का फ़ैसला किया। मैं खुश हूँ, अभ जब मैं वापिस घर आ गया हूँ और अपने पिछले हफ़्ते को याद कर रहा हूँ।


कितने समय बाद मुझे किसी ने सत-श्री-अक़ाल के बजाय अस-सलाम-अलैकुम कह कर बुलाया। मुझे अलग सा पर अच्छा भी लगा। मैं तो जवाब देना भूल ही गया हूँ। वाले-कम-असलाम, कहते है। मैंने नमस्ते से काम चलाया।


दुकानो के नाम अलग हैं। चंडीगढ़ या दिल्ली से अलग। टैक्सी चालक, जो मुझे होटेल ले गया, मुझ से मेरा शहर और मेरे परिवार के बारे में पूछने लगा। " आपके बच्चे और बीवी क्यूँ नहीं आए?"

"उनको पहाड़ पसंद नहीं है।" मैं और क्या कहता। और शायद सच भी यही है । लेकिन सबसे बड़ा कारण मेरा अकेले घूमने की मेरी मध्य-चालीस वाली सोच हो सकती हैं।


श्रीनगर की भूली सी याद मुझे मेरे पिछले बाइक ट्रिप, २०१४ से थी। सच कहूँ तो अच्छा नहीं लगा था तभ। मैं रात लगभग ७ बजे डल लेक पहुँचा था। बारिश थी और मैं होटेल में कमरा लेकर सारी रात ठंड से कापता रहा। सुबह ६ बजे तो मैं लेह के लिए निकल पड़ा था। इतने कम समय में किसी भी जगह के बारे में रायें बनाना ठीक नहीं।


इस बार मैंने श्रीनगर को दिन में देखा, किसी और शहर जैसा ही तो है। बच्चे स्कूल से आ रहे थे और बाज़ार में भीड़ वैसे ही थी जैसे किसी भी शहर में होती है। ट्रैफ़िक का शोर था लेकिन दोपहर की अजान भी हो रही थी। और मुझे अजान सुनायी दी तो इंदौर शहर याद आ गया। वही सुनता था ऐसी आरती याँ अज़ान।


सुभा छेः बजे के आस पास आजान हुई और एक नहीं, तीन-तीन सुनायी दी। अच्छा लगा । और मुझे पता लगा के अभ मैं सो कर उठ जाता हूँ और उसकी दी हुई ज़िंदगी की क़दर करता हूँ।

14 views0 comments

Recent Posts

See All
Post: Blog2_Post
bottom of page